google-site-verification: google952768227b2a36b6.html D Tech HiT: जनवरी 2023

रविवार, 29 जनवरी 2023

लड़ाकू विमान सुखोई एसयू-30 और मिराज 2000 आज सुबह एक प्रशिक्षण अभ्यास के दौरान दुर्घटनाग्रस्त :

 लड़ाकू विमान सुखोई एसयू-30 और मिराज 2000 आज सुबह एक प्रशिक्षण अभ्यास के दौरान दुर्घटनाग्रस्त :




अधिकारियों ने शनिवार को बताया कि भारतीय वायुसेना के दो लड़ाकू विमान सुखोई एसयू-30 और मिराज 2000 आज सुबह एक प्रशिक्षण अभ्यास के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गए, जिसमें एक पायलट की मौत हो गई। जहां एक विमान मध्य प्रदेश के मुरैना में दुर्घटनाग्रस्त हुआ, वहीं दूसरा 100 किलोमीटर दूर राजस्थान के भरतपुर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। रक्षा सूत्रों के अनुसार, सुखोई के दो पायलट थे और मिराज के पास एक। भारतीय वायुसेना दोनों विमानों को अग्रिम पंक्ति में तैनात करती है। सुखोई के दोनों पायलट इजेक्ट होने में सफल रहे और उन्हें हेलिकॉप्टर से अस्पताल ले जाया गया।

दोनों लड़ाकू विमानों ने ग्वालियर वायु सेना के अड्डे से उड़ान भरी, जिसमें रूसी-डिज़ाइन किए गए सुखोई और फ्रेंच मिराज 2000 लड़ाकू जेट दोनों के स्क्वाड्रन हैं। मुरैना में स्थानीय लोगों ने दृश्य के फुटेज को कैप्चर किया, जिसमें सुलगते विमान का मलबा जमीन पर बिखरा हुआ दिखा। रक्षा के अनुसार सूत्रों के अनुसार, वायु सेना ने यह निर्धारित करने के लिए एक जांच शुरू की है कि क्या मध्य-हवा की टक्कर दुर्घटना का कारण बनी। दुर्घटना के दौरान, Su-30 में दो पायलट थे और मिराज 2000 में एक था। प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, दो पायलट सुरक्षित हैं, और एक भारतीय वायुसेना का हेलिकॉप्टर तीसरे पायलट के स्थान पर जा रहा है। .

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ट्वीट में कहा, “मुरैना में कोलारस के पास वायु सेना के सुखोई-30 और मिराज-2000 विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर बहुत दुखद है।” मैंने स्थानीय प्रशासन को बचाव और राहत प्रयासों में तेजी लाने के लिए वायु सेना के साथ काम करने का निर्देश दिया है। मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि विमानों के पायलट सुरक्षित हों।

ईरान में भूकंप: रिक्टर स्केल पर 5.9:

 ईरान में भूकंप: रिक्टर स्केल पर 5.9:


ईरान में भूकंप: रिक्टर स्केल पर 5.9 की तीव्रता वाले भूकंप ने उत्तर पश्चिमी ईरान को दहला दिया, जिसमें कम से कम सात लोगों की मौत हो गई और 440 अन्य घायल हो गए। सरकारी समाचार एजेंसी आईआरएनए के मुताबिक भूकंप शनिवार रात 9:44 बजे आया। खोय में, ईरान-तुर्की सीमा (स्थानीय समय) के पास।

ईरान के पश्चिम अजरबैजान प्रांत के कई इलाकों में झटके काफी तेज और महसूस किए गए थे। इसके झटके अजरबैजान के पड़ोसी पूर्वी अजरबैजान की प्रांतीय राजधानी तबरेज समेत कई शहरों में भी महसूस किए गए।

भूकंप की तीव्रता 5.9:



यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) के अनुसार, भूकंप खोय से 14 किलोमीटर दक्षिण-दक्षिण पश्चिम में 10 किलोमीटर की गहराई में आया।

इस बीच, ईरान के केंद्रीय शहर इस्फहान में एक सैन्य संयंत्र में जोरदार धमाका हुआ। ईरान के मीडिया ने देश के रक्षा मंत्रालय का हवाला देते हुए एक "असफल" ड्रोन हमले की सूचना दी।

इससे पहले जुलाई 2022 में दक्षिणी ईरान में 6.3 तीव्रता के भूकंप से कम से कम पांच लोगों की मौत हो गई थी और 44 अन्य घायल हो गए थे। खबरों के मुताबिक, भूकंप का केंद्र सायह खोश गांव के पास था, जहां तेहरान से करीब 1,000 किलोमीटर दक्षिण में स्थित होर्मोजगन प्रांत में करीब 300 लोग रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, कई पड़ोसी देशों में भूकंप के झटके महसूस किए गए.

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि ईरान प्रमुख भूकंपीय दोषों पर स्थित है और प्रति दिन औसतन एक भूकंप आता है। 2003 में 6.6 तीव्रता के भूकंप ने ऐतिहासिक शहर बाम को तहस-नहस कर दिया था, जिसमें 26,000 लोग मारे गए थे। 2017 में, पश्चिमी ईरान में 7 तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें 600 से अधिक लोग मारे गए और 9,000 से अधिक घायल हो गए।

रविवार, 22 जनवरी 2023

आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जीवन परिचय || Dhirendra Shastri Biography || Dtechhit (bageshwar dham)


 बागेश्वर धाम के पाठकों के जीवन में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का अहम योगदान :(bageshwar dham)



नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम आपको बागेश्वर धाम (Bageshwar Dham) के महाराज धीरेन्द्र कृष्ण के जीवन परिचय के बारे में बताएंगे। जैसो कि आप सभी जानते है कि धीरेन्द्र कृष्ण को हनुमान जी का ही अवतार माना जाता है और लोगों के मन में इनके प्रति श्रद्धा बढ़ती जा रही है। कुछ लोग इन्हें चमत्कारी महाराज के नाम से भी जानते है। आज हर कोई बागेश्वर बालाजी महाराज के बारे में जानना चाहता है। इसलिए इस आर्टिकल में हम आपको इनके जीवन से सभी पहलूओं से अवगत करवाएंगे। तो चलिए जानते है धीरेन्द्र कृष्ण जी या बागेश्वर महाराज कौन है–

धीरेंद्र जी का जन्म 4 जुलाई 1996 को छतरपुर के पास स्थित, गड़ागंज ग्राम में हुआ था। इनका पूरा परिवार आज भी, उसी गड़ागंज में रहता है। जहां पर प्राचीन बागेश्वर धाम का मंदिर स्थित है। इनका पैतृक घर भी यहीं पर है। यही इनके दादा जी पंडित भगवान दास गर्ग (सेतु लाल) भी रहते थे। इनके दादा जी ने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा प्राप्त की थी। जिसके बाद  वे गड़ा गांव पहुंचे। जहां उन्होंने बागेश्वर धाम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। यहीं पर धीरेंद्र कृष्ण के दादाजी भी दरबार लगाया करते थे। उन्होंने आश्रम सन्यास आश्रम ग्रहण कर लिया था।

धीरेंद्र महाराज के गड़ागंज वाले पैतृक घर में, माता-पिता व उनका एक छोटा भाई भी रहता है। इनके पिताजी का नाम रामकृपाल गर्ग था। जो नशे की आदी थे। जिस कारण वह ज्यादा कुछ करते नहीं थे। इनकी माता जी का नाम सरोज गर्ग है। धीरेंद्र के छोटे भाई शालिग्राम गर्ग जी महाराज हैं। वह भी बालाजी बागेश्वर धाम को समर्पित हैं। धीरेंद्र के पिताजी के कुछ न करने के कारण, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। तीन-तीन दिन तक खाने का अभाव रहता था। जैसे तैसे गृहस्थी चला करती थी। रहने के लिए एक छोटा-सा कच्चा मकान था। जो बरसात के दिनों में टपका करता था। इसे हनुमान जी का आशीर्वाद कहिए या फिर किस्मत का खेल। इतनी कम उम्र में धीरेंद्र महाराज शानदार मुकाम और प्रसिद्धि हासिल की है। 










आज सभी लोग इनको अपना गुरु मानते है और इनके दर्शन और प्रवचनों को सुनने के लिए बड़ी संख्या में इकट्ठे होते है। इनकी लोकप्रियता का राज यही है कि ये सच्चे मन से ईश्वर से जुड़े हुए है। इन्हें चमत्कारी महाराज भी कहा जाता है क्योंकि लोगों की मान्यता है कि इनकी कही हुई बात कभी गलत नहीं होती है। अब हम इनके जीवन से जुड़ी जानकारियों को देखेंगे-(bageshwar dham sarkar)

बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के समर्थन में अखिल भारतीय संत समिति भी उतर आई है। समिति के महामंत्री जितेंद्रानंद सरस्वती ने बयान जारी करते हुए कहा कि बागेश्वर धाम सरकार के भक्त आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर जिस प्रकार प्रहार किया जा रहा है। इसके पीछे ईसाई मिशनरीज और इस्लामिक ताकतों का गठजोड़ है।

महामंत्री ने वीडियो जारी करते हुए कहा कि यह आचार्य धीरेंद्र शास्त्री पर नहीं, भारत की सामाजिक, धार्मिक और जड़ों से जुड़े सनातन हिंदू संस्कृति पर प्रहार है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के दरबार में भक्त उमड़ रहे हैं, सनातन धर्म का वैभव निखर रहा है। हमारे तंत्र, ज्योतिष और सारी विद्याओं के निष्णांत गुरुओं का आशीर्वाद उसे प्राप्त हो रहा है। यह सनातन विरोधियों के जलन का कारण है। पंजाब से लेकर केरल तक धर्म परिवर्तन करने वालों पर कोई उंगली नहीं उठाता है। यह धर्मपरिवर्तन कराने वालों के लिए पीड़ादायक है। देश का संत समाज आचार्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पीछे चट्टान की तरह खड़ा है। यह लड़ाई आचार्य धीरेंद्र की नहीं सनातन हिंदुओं के संत समाज और धर्माचार्यों की है। इसको अब हम धार देंगे।


धीरेन्द्र कृष्ण जी का शारीरिक मापदण्ड :












बागेश्वर धाम के बहुत सारे वीडियो आज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे है जिससे लोगों में बागेश्वर धाम के प्रति श्रद्धा बढ़ती जा रही है। इस धाम पर बालाजी का दरबार लगता है इसलिए यहां हजारों की संख्या में लोग आकर दर्शन करते है। भारत ही नहीं विदेशी भी यहां आकर बालाजी के दर्शन करते है। इस धाम का कार्यभार धीरेन्द्र कृष्ण जी संभालते है। इसलिए इन्हें बागेश्वर महाराज और बालाजी महाराज के राम से भी जाना जाता है।

लोग धीरेन्द्र कृष्ण को हनुमान जी का अवतार मानते है। हनुमान जी का ये मंदिर कई वर्षों पुराना है और धीरेन्द्र कृष्ण की पिछली 3-4 पीढ़ियां इस मंदिर में पूजारी रही है। धीरेन्द्र कृष्ण जी के दादा जी ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। इस दरबार में काफी सालों से विशाल दरबार लगता है और लाखों की संख्या में यहां श्रद्धालु आते है।

धीरेन्द्र कृष्ण 2003 से इस दरबार को संभाल रहें है। इन्होंने 9 वर्ष के उम्र में हनुमान जी की पूजा करनी शुरू कर दी थी। इन्होंने आज तक अपने सभी कर्तव्यों का पालन किया है जैसे इनके पूर्वज करते आए है। इन्होंने अपने प्रवचनों से श्रद्धालु की श्रद्धा को और ज्यादा मजबूत किया है। धीरेन्द्र कृष्ण ने बचपन से ही हनुमान जी को अपना सब कुछ अर्पित कर दिया। इनका ध्यान खेलकूद की तरफ भी नहीं गया, ये सिर्फ हनुमान जी के पूजा में लीन रहते थे।

बागेश्वर धाम में अर्जी लगाने का तरीका :

How to Apply Arji in Bageshwar Dham

 बागेश्वर धाम पहुंचने पर, श्रद्धालुओं को रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। फिर यहीं से टोकन मिलता है। टोकन मिलने के बाद, कुछ जानकारी देनी होती है। जिसमें श्रद्धालु का नाम, स्थान व मोबाइल नंबर होता है। रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद, फरियादी को बालाजी अर्थात हनुमान जी व महादेव शिव को अर्जी लगानी होती है।

मंदिर परिसर में हजारों की संख्या में, लाल व काले रंग की पोटली बंधी दिखती है। फरियादी को भी एक लाल रंग के कपड़े में नारियल बांधकर, मन में अपनी समस्या को दोहराते हुए। इस पोटली अर्थात अर्जी को बांधना होता है। इसमें लाल और काले रंग की अर्जी में, अंतर यह है। कि काले रंग की अर्जी सिर्फ भूत-प्रेत बाधा वाले व ऊपरी समस्याओं से ग्रसित व्यक्ति बांधते है।

 जबकि लाल रंग की अर्जी, अन्य सभी समस्याओं के लिए बांधी जाती है। (bageshwar dham)अर्जी बांधने की जगह पर ही, महादेव और महाबली का मंदिर है। जहां अर्जी लगाने के बाद, फरियादी 21 बार परिक्रमा करते हैं। इस दौरान मन में, मुराद को लगातार दोहराया जाता है।

 ऐसी मान्यता है कि इस जगह पर, धाम की सभी अलौकिक शक्तियां निवास करती हैं। इसी जगह पर लिंकन्तों 3 संतों की भी समाधिया हैं जो बागेश्वर सरकार के गुरु हैं जिनकी शक्ति आज भी इस धाम के अंदर समाहित है। इसके बाद पेशियों का सिलसिला शुरू होता है। जहां मुख्य रूप से मंगलवार व शनिवार को पेशी होती है। यूं तो प्रतिदिन भी हजारों की संख्या में, श्रद्धालु आते रहते हैं।(bageshwar dham)


रविवार, 15 जनवरी 2023

NEPAL PLANE CRASH | (Nepal) के पोखरा (Pokhara) में रविवार को बड़ा विमान हादसा होने का कारण |

 विमान हादसे के बारे में अब तक क्या पता:




दिल दहला देने वाला वीडियो ट्विटर पर शेयर किया गया है. शेयर किए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि रनवे पर पहुंचने से पहले ही प्लेन क्रैश हो गया है. वीडियो में दूर से आ रहे प्लेन को एक तरफ झुकते हुए देखा जा सकता है. वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट की गई अन्य तस्वीरों और वीडियो में दुर्घटनास्थल से धुएं का गुबार भी उठता दिख रहा है.(Nepal) के पोखरा (Pokhara) में रविवार को बड़ा विमान हादसा (Nepal Plane Crash) हो गया. इस हादसे में अब तक कुल 45 शव बरामद किए गए हैं. वहीं हादसे में 5 भारतीयों समेत सभी 72 यात्रियों की मौत की होने की आशंका है. अधिकारियों ने बताया कि दुर्घटनाग्रस्त होने के समय विमान में 68 यात्री और चालक दल के चार सदस्य सवार थे. अब प्लेन क्रैश होने का एक वीडियो सामने आया है. यह वीडियो प्लेन कैश होने के ठीक पहले का बताया जा रहा है. पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार घटना रविवार सुबह 11 बजे की है.

अब तक की जानकारी के मुताबिक 68 यात्रियों के साथ विमान ने काठमांडू से पोखरा (Pokhara) के लिए उड़ान भरी थी. लगभग 20 मिनट बाद ये विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जो कि अपने गंतव्य से कुछ किलोमीटर दूर था. दुर्घटना के बाद बचाव अभियान जारी है. वहीं नेपाल की एयरपोर्ट ऑथरिटी का दावा है कि मौसम की खराबी नहीं बल्कि तकनीकी खराबी के कारण प्लेन क्रैश हुआ है.




घटना की जानकारी मिलते ही नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने दुख जताने के लिए कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई. साथ ही उन्होंने नेपाल सरकार की सभी एजेंसियों को प्रभावी बचाव अभियान चलाने का निर्देश दिया. वह दुर्घटना की जानकारी लेने के लिए त्रिभुवन हवाई-अड्डे पर भी पहुंच गए हैं. फिलहाल इस बात की पुष्टि हो गई है कि दुर्घटनाग्रस्त विमान पर सवार 68 यात्रियों में से 10 विदेशी नागरिक थे. इसमें 5 भारतीय भी थे.नेपाल के पोखरा में हादसे का शिकार हुए यति एयरलाइंस के विमान में कम से 5 भारतीय यात्री भी सवार थे. कुल 68 यात्रियों और 4 क्रू मेंबर समेत 72 लोगों को ले जा रहा ये विमान पोखरा एयरपोर्ट के पास क्रैश हो गया. रिपोर्ट के मुताबिक, प्लेन क्रैश में अभी तक 40 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है.


 प्लेन में सवार पांच भारतीयों के बारे में जानकारी मिली है. नेपाल सिविल एविएशन अथॉरिटी ने बताया कि प्लेन में सवार पांच भारतीयों के नाम संजय जायसवाल, सोनू जायसवाल, अनिल कुमार राजभर, अभिषेक कुशवाह और विशाल शर्मा हैं.



रायटर्स के मुताबिक विमान में 5 भारतीय, 4 रूसी, 1 आयरिश और दो कोरियन नागरिक सवार थे. 

क्रैश की जगह पर रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि विमान गिरने के बाद उसमें भयंकर आग लगी थी. 

हादसे की जगह का वीडियो भी सामने आया है जिसमें आग धुएं की मोटी परत दिखाई दे रही थी. 

नेपाल की सिविल एविशयन अथॉरिटी (CAAN) के मुताबिक यती एयरलाइंस के विमान 9N-ANC-ATR-72 ने राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन एयरपोर्ट से सुबह 10.33 बजे उड़ान भरी थी. इसे पोखरा एयरपोर्ट पर लैंड करना था.

पायलट ने एटीसी से लैंडिंग परमिशन ले ली थी. पोखरा एटीसी से लैंडिंग के लिए ओके भी कह दिया गया था. अथॉरिटी ने तकनीकी खराबी से हादसे की आशंका जाहिर की है.

सिविल एविएशन ऑथरिटी का कहना है कि लैंडिंग से ठीक पहले विमान में आग की लपटें दिखाई दी थीं. इसलिए मौसम की खराबी के कारण दुर्घटना होने की बात नहीं कही जा सकती है.

एयरलाइंस के प्रवक्ता सुदर्शन भरतौला ने कहा हमें और शवों के मिलने की आशंका है. विमान के टुकड़े-टुकड़े हो गए हैं. 

फ्लाइट की आवाजाही के बारे में सूचना देने वाली वेबसाइट फ्लाइट राडार24 के मुताबिक यह विमान 15 साल पुराना था.

रिपोर्ट के मुताबिक प्लेन पुराने और नए एयरपोर्ट के बीच मौजूद सेती नदी की घाटी में क्रैश हुआ है.

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने दुर्घटना के बाद मंत्रिपरिषद की आपात बैठक बुलाई है.


प्रधानमंत्री प्रचंड ने दुर्घटना पर दुख प्रकट करते हुए गृह मंत्रालय, सुरक्षाकर्मियों और सभी सरकारी एजेंसियों को तत्काल बचाव और राहत अभियान चलाने का निर्देश दिया है.

भारत के केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने नेपाल के विमान हादसे पर दुख जाहिर करते हुए कहा "नेपाल में एक दुखद विमान दुर्घटना में जिंदगियों का नुकसान अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है."

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?Makar Sankranti ||DtechHit ||लोहड़ी

 मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?:



लोहड़ी का अर्थ:

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।

 




कब मनाते हैं लोहड़ी:

              वर्ष की सभी ऋतुओं पतझड, सावन और बसंत में कई तरह के छोटे-बड़े त्योहार मनाए जाते हैं, जिन में से एक प्रमुख त्योहार लोहड़ी है जो बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी, पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है।

 




अग्नि के आसपास उसत्व:

              लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।

 




विशेष पकवान:

              लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गजक, रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।

             



नववधू, बहन, बेटी और बच्चों का उत्सव:

              पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है।

 

उत्सव मनाने की मान्यता:

              कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि सुंदरी एवं मुंदरी नाम की लड़कियों को राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लड़कों से उनकी शादी करवा दी थी।

 

 खेत खलिहान का उत्सव:

              वैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब के गांव, फसल और मौसम से है। इस दिन से मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। इससे पहले रबी की फसल काटकर घर में रख ली जाती है। खेतों में सरसों के फूल लहराते दिखाई देते हैं।

 

पौराणिक मान्यता:

              पौराणिक मान्यता अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है।

             

लोहड़ी का आधुनिक रूप:

              आधुनिकता के चलते लोहड़ी मनाने का तरीका बदल गया है। अब लोहड़ी में पारंपरिक पहनावे और पकवानों की जगह आधुनिक पहनावे और पकवानों को शामिल कर लिया गया है। लोग भी अब इस उत्सव में कम ही भाग लेते हैं।

 

ईरान में भी इसी तरह मनाते हैं उत्सव:

              ईरान में भी नववर्ष का त्योहार इसी तरह मनाते हैं। आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।

             


रविवार, 8 जनवरी 2023

जोशीमठ संकट में क्यों? क्या है इसका समाधान? वैज्ञानिकों ने बताया पूरा प्लान

 

जोशीमठ संकट में क्यों ?क्या है इसका समाधान? वैज्ञानिकों ने बताया पूरा प्लान :


जोशीमठ संकट में क्यों::::

वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय में निरंतर भूगर्भीय हलचल हो रही हैं। यह अभी निर्माण की अवस्था में है। हिमालय अभी काफी युवा और बदलाव की ओर अग्रसर है। इसलिए जोशीमठ में ये घटनाएं हो रही हैं।

जोशीमठ संकट में क्यों; क्या है इसका समाधान? वैज्ञानिकों ने बताया पूरा प्लान

पहाड़ों पर भूस्खलन अथवा भू-धंसाव की घटनाएं बढ़ रही हैं। पहाड़ एवलांच, मूसलाधार बारिश, तापमान बढ़ने का दुष्प्रभाव, ग्लेशियर पिघलने, ग्लेशियर झील फटने, जलवायु परिवर्तन, जंगलों में आग जैसे खतरों से जूझ रहे हैं। इसके अलावा अनियोजित और अवैज्ञानिक निर्माण की वजह से पहाड़ के कुछ इलाकों का अस्तित्व खतरे में आ चुका है। निचले हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाली आबादी भी इन खतरों का कई बार सामना बार-बार कर रही है, लेकिन वैज्ञानिकों का मत है कि ग्लेशियर के मलबे पर बसे पांच हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों पर यह खतरा अधिक है। जोशीमठ जैसी घटना इसी का नतीजा है, इससे सबक लेना होगा।

संकट क्यों?:

वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय में निरंतर भूगर्भीय हलचल हो रही हैं। यह अभी निर्माण की अवस्था में है। हिमालय अभी काफी युवा और बदलाव की ओर अग्रसर है। बढ़ते मानवीय दखल एवं पर्यावरणीय बदलावों से हिमालय की सेहत और संरचना पर असर पड़ा है। वाडिया के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विक्रम गुप्ता के मुताबिक, उच्च हिमालय के अधिकांश क्षेत्र मलबे के ढेर पर बसे हैं। यही मलबा सैकड़ों, हजारों साल बाद एक ठोस सतह में बदल चुका है। पहले इसमें खेती हुई और धीरे-धीरे आबादी बसनी शुरू हुई। इस मलबे के भार वहन करने की एक क्षमता है। लगातार बढ़ती आबादी इन क्षेत्रों पर अतिरिक्त दबाव बना रही है। पहाड़ में निर्माण करने की सीमा तय होनी चाहिए। पहाड़ों में यूं भी बीते कुछ दशकों में तमाम तरह के बड़े निर्माण हुए हैं। सड़क निर्माण में चट्टानों की कटिंग, बड़ी-बड़ी बांध परियोजनाओं के निर्माण में मिट्टी का कटाव एक बदलाव ही है, जो नए भूस्खलन क्षेत्र पैदा कर सकता है।उत्तराखंड में इस वक्त 84 भूस्खलन के डेंजर जोन चिह्नित किए जा चुके हैं। वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार के अनुसार, बाढ़ की वजह से तबाही की घटनाएं 39 हजार साल और 15 हजार साल पहले से हो रही हैं। ग्लेशियर झील के फटने और तेज बारिश की वजह से भी निचले इलाकों में भारी भूस्खलन, भू-कटाव हुआ है। एक अध्ययन में 1820 से वर्ष 2000 के बीच हिमालयी क्षेत्र में कुल 180 वर्षों में बाढ़ की 64 घटनाएं दर्ज गईं।


क्या है समाधान:

बड़े पैमाने पर वनीकरण, पेड़ों के कटान पर रोक, पहाड़ की कटिंग और बड़े निर्माण पर रोक, किसी भी तरह के निर्माण पर वैज्ञानिक सलाह जरूरी, आबादी का दबाव एक ही जगह से शिफ्ट हो, नदी तट पर अतिक्रमण नहीं हो, ढलान वाले नालों से आबादी को दूर रखा जाए, भूस्खलन संभावित जोन चिह्नित कर ट्रीटमेंट शुरू हो। रिटेनिंग वॉल के कार्य हों। भूस्खलन से कमजोर हुई संरचनाओं को मजबूती दी जाए और जलनिकासी की उचित व्यवस्था की जाए। भूस्खलन क्षेत्र से आबादी को विस्थापित किया जाए।


जोशीमठ की मॉनिटरिंग बेहद जरूरी:डॉ. डोभाल:

वाडिया के रिटायर वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्र में जोशीमठ समेत पांच हजार फीट से ऊपर के सभी इलाके ग्लेशियर के मलबे पर टिके शहर हैं। जोशीमठ अधिक ढलान पर बसा है। जनसंख्या का दबाव अधिक है और भवनों की तादाद भी काफी है। पानी की निकासी सही नहीं है। ऊपर औली क्षेत्र में जमकर बर्फबारी होती है, जिसका सीधा ढलान जोशीमठ की तरफ है। जहां तक सुरंग से प्रभाव की बात है तो सुरंग की वजह से कहीं न कहीं प्रभाव तो पड़ ही रहा होगा। फिलहाल मौजूदा स्थिति में मॉनिटरिंग और उसके अनुरुप कार्ययोजना ही बचाव का विकल्प है। जोशीमठ में जितनी दरारें आई हैं, उनकी मॉनिटरिंग होनी चाहिए, वह कितनी तेजी से चौड़ी हो रही हैं, उससे खतरे का अंदाजा लग सकता है। पानी के स्रोत देखे जाएं। कहीं पंचर जैसी स्थिति तो नहीं, सुरंग में जहां पानी निकल रहा था, उसमें भी अब कमी देखी गई है। कहीं यह पानी दूसरी ओर डायवर्ट तो नहीं हो गया। मूवमेंट तेज है तो खतरा भी ज्यादा है।


उत्तराखंड के जोशीमठ में तबाही की आशंका ||Dtechhit

 जोशीमठ में कितनी बड़ी तबाही का ख़तरा?


उत्तराखंड के जोशीमठ में तबाही की आशंका:






जोशीमठ:जोशीमठ एक पवित्र शहर है जो उत्‍तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। समुद्र स्‍तर से 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह शहर बर्फ से ढकी हिमालय पर्वतमालाओं से घिरा हुआ है। यह स्‍थल हिंदू धर्म के लोगों के लिए प्रतिष्ठित जगह है और यहां कई मंदिर भी स्‍थापित हैं। जोशीमठ, आदि शंकराचार्य द्वारा 8 वीं सदी में स्‍थापित किए जाने वाले चार मठों में से एक है। यहां हिंदू धर्म के लिखित वेद अथर्ववेद का पाठ, पवित्र माना जाता है। इस शहर को पूर्व काल में कार्तिकेयपुरा के नाम से जाना जाता था। उत्‍तराखंड आकर जोशीमठ की सैर के लिए अवश्‍य आना चाहिए। यह जगह कामाप्रयाग क्षेत्र में स्थित है जहां नदी धौलीगंगा और नदी अलकनंदा मिलती हैं। जोशीमठ, चमोली जिले के ऊपरी क्षेत्रों में ट्रैकिंग का अवसर भी प्रदान करता है। क्षेत्र का सबसे प्रसिद्ध ट्रैकिंग मार्ग जोशीमठ से शुरू होते हैं और पर्यटकों को फूलों की घाटी की ओर ले जाते हैं। 




क्या ख़ास है जोशीमठ के आस पास :जोशीमठ में कई लोकप्रिय पर्यटन स्‍थल हैं जहां पर्यटक आराम से सैर कर सकते हैं। इनमें से एक है - कल्‍पवृक्ष, जो देश का सबसे पुराना पेड़ माना जाता है। स्‍थानीय लोगों के अनुसार, लगभग 1200 पुराने इस वृक्ष के नीचे आदि गुरू शंकराचार्य ने घोर तपस्‍या की थी। कल्‍पवृक्ष की परिधि 21.5 मीटर की है। नरसिंह मंदिर, जोशीमठ का अन्‍य लोकप्रिय मंदिर है, जो हिंदूओं के भगवान नरसिंह को समर्पित है। यह माना जाता है कि यह मंदिर, संत बद्री नाथ का घर हुआ करता था। इस मंदिर में स्‍थापित भगवान नरसिंह की प्रसिद्ध मूर्ति दिन प्रति दिन सिकुडती जा रही है। मान्‍यताओं के अनुसार, एक दिन यह मूर्ति पूर्णत: समाप्‍त हो जाएगी और उस दिन भयंकर भूस्‍खलन के कारण बद्रीनाथ को जाने वाला रास्‍ता बंद हो जाएगा। जोशीमठ से लगभग 24 किमी. की दूरी पर नंदा देवी राष्‍ट्रीय पार्क स्थित है जो एक प्रसिद्ध पर्यटन स्‍थल है। इस पार्क को संयुक्‍त राष्‍ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्‍कृतिक संगठन ( यूनेस्‍को ) के द्वारा सन् 1988 में विश्‍व विरासत स्‍थल घोषित किया गया है।







कैसे जाएं जोशीमठ :पर्यटक, जोशीमठ तक वायु मार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग के द्वारा आराम से पहुंच सकते हैं। जोशीमठ के लिए नजदीकी एयरपोर्ट जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून और नजदीकी रेल हेड, ऋषिकेश रेलवे स्‍टेशन है। जोशीमठ जाने का सबसे अच्छा समय जोशीमठ क्षेत्र में सर्दियों के दौरान भयंकर बर्फबारी और मानसून के दौरान मूसलाधार बारिश होती है। जो पर्यटक जोशीमठ आने का शौक रखते हैं उन्‍हे गर्मियों 

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