मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?:
लोहड़ी का अर्थ:
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी)
शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ
बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने
और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।
कब मनाते हैं लोहड़ी:
वर्ष की सभी ऋतुओं पतझड, सावन और बसंत में कई तरह के छोटे-बड़े त्योहार मनाए जाते हैं,
जिन में से एक प्रमुख त्योहार लोहड़ी है जो
बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी, पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके
अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है।
अग्नि के आसपास उसत्व:
लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के
चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की
परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी,
खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते
हैं।
विशेष पकवान:
लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गजक,
रेवड़ी, मुंगफली, तिल-गुड़ के
लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों
का साग प्रमुख होते हैं। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत
गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।
नववधू, बहन, बेटी और बच्चों का उत्सव:
पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है।
उत्सव मनाने की मान्यता:
कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद
में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि सुंदरी एवं मुंदरी नाम की
लड़कियों को राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लड़कों से
उनकी शादी करवा दी थी।
खेत खलिहान का उत्सव:
वैसाखी त्योहार की तरह लोहड़ी का सबंध भी पंजाब
के गांव, फसल और मौसम से है। इस
दिन से मूली और गन्ने की फसल बोई जाती है। इससे पहले रबी की फसल काटकर घर में रख
ली जाती है। खेतों में सरसों के फूल लहराते दिखाई देते हैं।
पौराणिक मान्यता:
पौराणिक मान्यता अनुसार सती के त्याग के रूप
में यह त्योहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर
शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता
है।
लोहड़ी का आधुनिक रूप:
आधुनिकता के चलते लोहड़ी मनाने का तरीका बदल
गया है। अब लोहड़ी में पारंपरिक पहनावे और पकवानों की जगह आधुनिक पहनावे और
पकवानों को शामिल कर लिया गया है। लोग भी अब इस उत्सव में कम ही भाग लेते हैं।
ईरान में भी इसी तरह मनाते हैं उत्सव:
ईरान में भी नववर्ष का त्योहार इसी तरह मनाते
हैं। आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। मसलन, पंजाब, हरियाणा और
दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे
त्योहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें